इसी आक्रोश और भविष्य की चिंता ने उन्हें यह उग्र कदम उठाने पर मजबूर किया। तीन घंटे तक घेराबंदी, डीईओ के 'आश्वासन पर टली आफत सुबह से ही स्कूल को बंधक' बनाकर प्रदर्शन कर रहे इन नन्हे योद्धाओं की आवाज जब प्रशासनिक गलियारों तक पहुँची, तो करीब तीन घंटे बाद पुलिस बल के साथ जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) मौके पर पहुँचे। डीईओ ने छात्रों को समझाने-बुझाने और शिक्षकों की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया, जिसके बाद ही छात्रों ने अपना प्रदर्शन समाप्त किया।
अल्टीमेटम अगर 15 दिन में शिक्षक नहीं तो फिर 'आर-पार की लड़ाई
भले ही डीईओ के लॉलीपॉप ने तात्कालिक शांति ला दी हो, लेकिन छात्रों ने प्रशासन को एक कड़ा अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने दो-टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि 15 दिनों के भीतर शिक्षकों की कमी को दूर नहीं किया जाता, तो वे एक बार फिर इसी तरह तालाबंदी कर महा-आंदोलन करने को बाध्य होंगे। शंकरदाह की यह घटना सिर्फ एक स्कूल की पुकार नहीं, बल्कि यह धमतरी जिले में शिक्षा के गिरते स्तर और प्रशासनिक उदासीनता पर एक करारा तमाचा है। शिक्षकों की कमी का यह नासूर न केवल छात्रों के भविष्य को अंधकारमय बना रहा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर रहा है कि आखिर कब तक हमारे बच्चे अपने हक के लिए सड़कों पर जंग लड़ते रहेंगे?
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