धमतरी जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर नसीम अब डॉक्टर तो हैं, लेकिन सरकारी डॉक्टर नहीं रहे। कारण बड़ा सीधा है 2014 में उन्होंने अस्पताल के एक मलेरिया कर्मचारी से रिश्वत ली, और उसी वक्त ACB ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। कैमरे चालू, टीम तैनात और डॉक्टर साहब की जेब में घुसे नोटों के साथ खेल खत्म! समय बीता, मामला कोर्ट पहुंचा और 2018 में विशेष न्यायाधीश ने उन्हें एक साल की सज़ा और 15,000 रुपए जुर्माना ठोक दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई हाईकोर्ट में मामला लंबा खिंचा, लेकिन अब राज्य शासन ने भी आखिरी फैसला सुनाया और डॉक्टर नसीम को सेवा से पूरी तरह बर्खास्त कर दिया। लोग कह रहे हैं
जिसने ENT की पढ़ाई की थी, उसने अपनी ही प्रतिष्ठा की सांसें बंद कर दीं। इलाज की जगह इंतजाम में ज्यादा ध्यान दिया और अब खुद सरकारी आदेशों की चपेट में आ गया। ये वही डॉक्टर नसीम हैं, जिनसे कभी मरीजों की उम्मीद जुड़ी रहती थी, लेकिन 2014 में उन्होंने उम्मीद की नहीं, रिश्वत की नब्ज पकड़ी। उस वक्त के ACB ऑपरेशन ने साफ दिखा दिया कि कैसे कुछ सफेद कोट वाले काले धंधे में लगे हैं। अब सवाल उठता है क्या डॉक्टर अकेले खेल रहे थे या कोई टीम थी उनके साथ? फिलहाल स्वास्थ्य विभाग यही कह रहा कि सिर्फ नसीम ही दोषी थे। लेकिन शहर में चर्चा है कि ऐसे खेल अकेले नहीं होते। यह खबर सिर्फ डॉक्टर नसीम तक सीमित नहीं है, यह हर उस सरकारी कर्मचारी के लिए चेतावनी है जो सेवा को सौदा समझता है। एक बार घूस ली, और पूरी नौकरी आईसीयू में चली गई। अगली बार कोई रिश्वत की पुड़िया देखे, तो सोचे कहीं कैमरा चालू तो नहीं?
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