धमतरी। स्टंटबाज़ी का खेल अब देश के लिए एक अभिशाप बनता जा रहा है चाहे वो रफ्तार से उड़ती मोटरबाइकों पर हो या खेल के बहाने मैदानों की छत पर। स्टंट, स्टंट ही होता है और जान, जान होती है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि अब यह स्टंटबाज़ी बच्चों की आदत और सिस्टम की चुप्पी बनती जा रही है। धमतरी के विष्णु हीरवाही एकलव्य खेल मैदान में इन दिनों खेल-कूद से ज्यादा, खतरनाक करतब का दृश्य रोज़ाना देखा जा रहा है। यहां बच्चे ज़मीन पर नहीं, सीधे छत पर खेलते हैं और वहां पहुंचने का रास्ता है मैदान के भीतर लगा बिजली का खंभा, जिसे वे सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर में साफ दिख रहा हैं कि बच्चे खंभे के सहारे ऊपर चढ़ते हैं, फिर छत पर पूरी रफ्तार में दौड़ते, उछलते, कूदते हैं। जहां न कोई रेलिंग है, न कोई सेफ्टी नेट, न कोई गार्ड। छोटा सा फिसलाव और नतीजा… सीधा मौत से सामना। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह कोई एक दिन का नज़ारा नहीं है, यह अब नियमित करतब बन चुका है। कुछ बच्चे नीचे खेलते हैं, और कुछ ऊपर छत को ही स्टेज बना लेते हैं मानो यह कोई खतरों के खिलाड़ी बच्चों का वर्जन हो। और जैसे निगम का स्मार्ट साइलेंस मोड ऑन है। न गार्ड, न निगरानी, न चेतावनी बोर्ड और न ही कोई रोकटोक। हैरानी की बात ये है कि ये सब कुछ नगर निगम की नाक के नीचे हो रहा है।
और कहीं यह लापरवाही किसी मासूम की ज़िंदगी न छीन ले, इसका डर हर किसी को सताने लगा है। खेल परिसर का नाम एकलव्य है जो समर्पण और अनुशासन का प्रतीक है। लेकिन यहां न सुरक्षा है, न अनुशासन, और न ही ज़िम्मेदारी का कोई अंश। प्रशासन कहेगा कि हमें पता नहीं था पर तस्वीरें बोल रही हैं। और याद रखिए तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं। अब सवाल ये नहीं कि बच्चे छत पर क्यों चढ़ रहे हैं… सवाल ये है कि प्रशासन नीचे क्यों बैठा है? यदि अभी चेतावनी और व्यवस्था नहीं की गई, तो ये खेल का मैदान नहीं, स्टंट की स्टेज बनकर एक दिन ख़बर की सबसे दुखद हेडलाइन बन जाएगा।