धमतरी। हर सोमवार धमतरी कलेक्टर ऑफिस के बाहर लंबी कतार लगती है… किसी के पास टूटी छत की गुहार है, तो किसी के पास राशन का हिसाब नहीं। किसी की ज़मीन गई, किसी का हक़। सबको उम्मीद है कि भीतर बैठी कुर्सियाँ कुछ सुनेंगी, कुछ करेंगी। लेकिन इस सोमवार, एक आदमी उम्मीद लेकर नहीं… पेट्रोल लेकर आया। डोमा निवासी करण सोनवानी, जो लगातार कई बार आवेदन देकर थक चुका था। जिसका नाम आवास सूची में नहीं आया, वो आया था अब अपनी ज़िंदगी की लपटें दिखाने। वो सोच कर आया था जब शब्द असर नहीं करते, तब शायद आग करेगी।कलेक्टर ऑफिस के भीतर, वहीं जहां न्याय बांटा जाता है…
उसने अपने ऊपर पेट्रोल उड़ेल दिया। भीड़ की सांसें थम गईं, गार्ड दौड़े… और अगर कुछ पल की देरी होती, तो जनदर्शन के नाम पर जनबलि की घटना हो जाती। अब सवाल ये नहीं कि उसे बचा लिया गया, सवाल ये है कि वो ऐसी नौबत तक पहुंचा क्यों? कलेक्टर कार्यालय जैसे महत्वपूर्ण भवन में कोई व्यक्ति आसानी से पेट्रोल की बोतल लेकर अंदर कैसे घुस गया?और उससे भी बड़ा सवाल जब कोई न्याय की आस लेकर आता है,
और सिस्टम से जवाब की बजाय चुप्पी मिलती है, तो क्या यही हश्र होता है? सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल, प्रशासनिक संवेदनहीनता पर सवाल, और सबसे बड़ा सवाल ये कैसी व्यवस्था है जहां जीते जी कोई सुनता नहीं और मरने की कोशिश पर सब जागते हैं? प्रशासन ने मामले को गंभीर बताया है, और कहा है जांच होगी… सर्वे होगा… कार्रवाई होगी… लेकिन काश ये होगा शब्द उस दिन हुआ होता तो शायद आज हो सकता था ना कहना पड़ता।
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