धमतरी। पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं होते… ये किसी की छांव हैं, किसी की सांस हैं, और किसी मां के आंचल जैसे होते हैं। एक पेड़ मां के नाम लगाना तो सरल है, पर हर पेड़ को मां समझकर बचाना यही असली सेवा है धरती की। छत्तीसगढ़ की राजनीति इन दिनों पेड़ों और भावनाओं से होकर गुजर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल एक पेड़ मां के नाम को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस अभियान पर तंज कसते हुए कहा एक पेड़ मां के नाम… लेकिन पूरा जंगल बाप के नाम! बघेल का यह बयान वायरल होते ही भाजपा ने इसे मां के सम्मान का अपमान बताया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव, जो हाल ही में धमतरी प्रवास पर थोड़ी देर के लिए रुके थे, उन्होंने बयान में कहा मां के नाम पेड़ लगाना सिर्फ एक भावनात्मक कदम नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा है।
लेकिन सवाल सिर्फ भावनाओं का नहीं है सवाल हकीकत का है। क्या पेड़ लगाना ही काफी है, या पेड़ों को बचाना भी जरूरी है? बीते कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के हरे-भरे जंगलों को खनन परियोजनाओं के नाम पर काटा गया। हसदेव का जंगल, जो छत्तीसगढ़ की सांसों जैसा था, वहां अडानी समूह को खनन की इजाजत मिली। हजारों पेड़ कटे, आदिवासी रोए, आंदोलन हुए… पर सरकारें मौन रहीं। ना तब किसी नेता ने मां को याद किया, ना किसी पार्टी को पेड़ काटने पर शर्म आई। अब जब एक पेड़ मां के नाम लग रहे हैं तो सवाल भी उठने लाज़मी हैं। आज की सबसे बड़ी हकीकत ये है... एक ओर फोटो खिंचवाकर पौधे लगाए जा रहे हैं, दूसरी ओर उन्हीं जंगलों को चुपचाप खत्म किया जा रहा है। कई बार तो पेड़ लगाए भी जाते हैं, लेकिन देखरेख के अभाव में वो पौधे ज़मीन पर सूख जाते हैं। और नेताओं के भाषण फिर हरियाली के नाम पर हर साल नए बीज बो देते हैं। भूपेश बघेल का बयान भले विवादित हो, लेकिन सवाल वाजिब है क्या पेड़ सिर्फ मां के नाम पर लगेंगे, या धरती मां के अस्तित्व को भी बचाया जाएगा? क्या अडानी को दी गई ज़मीन पर एक भी पेड़ धरती मां के नाम नहीं लगना चाहिए था?