दुर्गेश साहू धमतरी। जहां लोगों को इलाज और उम्मीद मिलनी चाहिए, वहीं अब जिला अस्पताल से इंसानियत को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक निजी संस्था के सदस्य पर आदिवासी महिला से नौकरी दिलाने के नाम पर शारीरिक संबंध की मांग का गंभीर आरोप लगा है। धमतरी जिला अस्पताल से एक शर्मनाक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक आदिवासी महिला ने आरोप लगाया है कि जीवन दीप समिति के सदस्य ने नौकरी दिलाने के नाम पर शारीरिक संबंध की मांग की। महिला ने बताया कि ऐसा न करने पर उसे नौकरी न देने की धमकी भी दी गई। मिली जानकारी के मुताबिक, पीड़िता ने जिला अस्पताल में जीवन दीप समिति के अंतर्गत वार्ड आया के पद के लिए आवेदन भरा था। आवेदन देने के कुछ दिनों बाद समिति मेंबर का फोन आया। महिला का आरोप है कि आरोपी ने फोन पर कहा पहले तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाओ, तभी मैं तुम्हें नौकरी दिलवाऊंगा। कलेक्टर भी तुम्हें जॉब नहीं दिला सकता, मैं सर्जन से बात करके दिलवाऊंगा। महिला ने जब इस अमर्यादित मांग को ठुकराया, तो आरोपी ने बार-बार फोन कर उसे परेशान करना शुरू कर दिया। बताया गया कि पीड़िता ने इस पूरे मामले की शिकायत पहले भी जिला प्रशासन से मौखिक रूप से की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब महिला ने फिर से जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन से लिखित शिकायत कर न्याय की मांग की है।
इस मामले ने पूरे जिले में आक्रोश फैला दिया है। सर्व आदिवासी समाज जिला अध्यक्ष जीवरखाम लाल मराई ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा आदिवासी महिलाओं के साथ इस तरह का अत्याचार धमतरी जिले में लगातार बढ़ रहा है। इसके पहले भी बोरई थाना क्षेत्र में ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अब जिला अस्पताल में नौकरी के नाम पर आदिवासी महिला को शारीरिक शोषण के लिए प्रेरित करना या धमकाना बेहद निंदनीय है। समाज ऐसे कृत्य को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने आगे कहा हम पहले भी कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दे चुके हैं। अब फिर इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे। अगर आरोपी पर सख्त कदम नहीं उठाया गया, तो समाज सड़क पर उतरकर आंदोलन करेगा। अब सबसे बड़ा सवाल यह है क्या नौकरी पाने की कीमत अब अस्मिता बन गई है? क्या जिला प्रशासन ऐसे मामलों में केवल फाइलें पलटने तक ही सीमित रहेगा?

फिलहाल इस पूरे मामले में पुलिस प्रशासन की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है, लेकिन शहर में यह चर्चा जोरों पर है कि अगर अस्पताल में ही महिलाओं को सुरक्षा न मिले, तो भरोसा आखिर किस पर किया जाए?