दुर्गेश साहू धमतरी। शहर का घड़ी चौक… जिसे लोग घड़ी चौक भी कहते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि वहां लगी घड़ी सिर्फ नाम की रह गई है। सालों से एक ही समय पर अटकी हुई है, जैसे प्रशासन और निगम की लापरवाही का प्रतीक बनकर हवा में लटक गई हो। शहरवासी अब उसमें समय नहीं देखते, क्योंकि वहां घड़ी चलती नहीं… सिर्फ टंगी रहती है। लेकिन इसी बीच धमतरी के एक छोटे से वार्ड ने बड़ा आइना दिखा दिया है नगर निगम को। बसपारा वार्ड में युवाओं ने अपने वार्ड के एक नीम पेड़ पर घड़ी लगा दी है और मज़े की बात यह है कि यह घड़ी सही समय भी बताती है। हाँ, आपने सही पढ़ा निगम का घड़ी चौक सो रहा है, लेकिन पेड़ पर लगी घड़ी चल रही है। स्थानीय लोग चुटकी लेते हुए कहते हैं निगम की करोड़ों की घड़ी बंद, और हमारी सौ-पचास की घड़ी समय पर टाइम बताती हैं। बसपारा वार्ड के युवाओं ने बताया कि वहाँ रोज़ बैठका लगता है। लोग आना-जाना करते हैं, और वार्ड में कई घरों में दीवार घड़ी भी नहीं है। इसलिए उन्होंने सोचा कि एक घड़ी पेड़ पर लगा दी जाए ताकि हर आने-जाने वाला आसानी से समय देख सके। अब यह नीम वाला घड़ी लोगों के लिए टाइम की असली पहचान बन गई है। सुलभ शौचालय के रास्ते से गुजरने वाले लोग भी एक नजर उस घड़ी पर डालकर आगे बढ़ जाते हैं। इसके उलट, शहर का प्रसिद्ध घड़ी चौक लोगों को सिर्फ एक चीज बताता है कि नगर निगम का समय कब से ठहरा हुआ है। बाहर से आए लोग अक्सर वहां की बंद घड़ी देखकर धोखा खा जाते हैं। कई बार लोग अपने मोबाइल से चेक करके खुद ही कहते हैं, अरे, यह तो बंद है। घड़ी चौक की घड़ी अब शहर वालों के लिए केवल एक सफेद हाथी, और प्रशासनिक सुस्ती का जीवित स्मारक बन चुकी है।
सवाल यह नहीं है कि बसपारा के युवाओं ने पेड़ पर घड़ी क्यों लगाई… सवाल यह है कि गाड़ी चौक पर लगी करोड़ों की घड़ी क्यों नहीं चल पा रही है? कौन उसके रखरखाव का जिम्मेदार है? और कब तक शहर के लोग पेड़ों से समय देखेंगे और चौराहों से धोखा खाएंगे? धमतरी के कुछ नागरिकों का कहना है अगर निगम अपनी घड़ी नहीं चला सकता, तो पेड़ वाली घड़ी ही शहर की आधिकारिक घड़ी घोषित कर दो।
समय दिखाने की जिम्मेदारी अब नीम के पेड़ ने उठा ली है… और समय सुधारने की जिम्मेदारी किसको उठानी है यह सवाल अब निगम के दरवाजे पर टंगा इंतज़ार कर रहा है।


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