दुर्गेश साहू धमतरी। भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर आयोजित जनजाति गौरव दिवस का जिला स्तरीय कार्यक्रम बिलाई माता मंदिर के पीछे सामुदायिक भवन में बड़ी तैयारी के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अजय चंद्राकर सहित कई जनप्रतिनिधि, अधिकारी और विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्चुअल माध्यम से जुड़े और बिरसा मुंडा के संघर्ष व योगदान पर अपनी बात रखी। यह आयोजन आदिवासी समाज के सम्मान के नाम पर रखा गया था, लेकिन कार्यक्रम स्थल पर जो दृश्य सामने आया, उसने पूरे गौरव दिवस की भावना पर ही सवाल खड़ा कर दिया। आयोजन में आदिवासी आवासीय गर्ल्स और बॉयस हॉस्टल के बच्चों को विशेष रूप से बुलाया गया था। जानकारी के अनुसार, कार्यक्रम में बच्चों को इसलिए बुलाया गया था ताकि वे भगवान बिरसा मुंडा के जीवन, संघर्ष और इतिहास से जुड़ी बातों को प्रत्यक्ष रूप से सुन सकें, उपस्थिति दर्ज हो, सांस्कृतिक रंग दिखे और कार्यक्रम का माहौल जीवंत बने। लेकिन बच्चों का अनुभव इसके बिल्कुल उलट रहा। उनके मुताबिक उन्हें दोपहर 12 बजे के आसपास हॉस्टल से बुलाया गया और बच्चे करीब 4 से 5 किलोमीटर दूरी साइकिल से सफर कर कार्यक्रम स्थल पहुँचे। पहुंचने के बाद उन्हें न पानी मिला, न चाय, न नाश्ता और कार्यक्रम समाप्त होने तक भोजन की कोई व्यवस्था भी नहीं दिखाई दी। बच्चों ने बताया कि मंच के सामने वीआईपी पंक्ति में बैठे लोगों को जब ढोकला परोसा गया, तब उन्हें उम्मीद थी कि शायद उनके लिए भी कुछ व्यवस्था होगी। लेकिन इंतजार के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला। कई बच्चे भूखे पेट ही वापस हॉस्टल फिर से साइकल लेकर लौट गए।
जब इस संबंध में समाज कल्याण विभाग की उप संचालक मनीषा पांडे से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि खाने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन बच्चों और कर्मचारियों से की गई पड़ताल में यह स्पष्ट हुआ कि मौके पर न कोई रसोई थी, न भोजन तैयार होने के कोई संकेत। यह विरोधाभास तब और स्पष्ट हो गया जब कुछ अधिकारी कर्मचारी बाद में रात के खाने का हवाला देने लगे मानो दोपहर से भूखे बैठे बच्चों की समस्या रात के मेन्यू से हल हो सकती हो। 

सवाल यह है कि जब बच्चों को दोपहर में बुलाया गया था, तो दोपहर का भोजन कहाँ था? व्यवस्था थी तो गायब कैसे हो गई? और अगर व्यवस्था नहीं थी, तो दावा क्यों किया गया? गौरव दिवस के मंच पर आदिवासी सम्मान की बातें तो खूब कही गईं, लेकिन उसी मंच के सामने बैठे आदिवासी बच्चों को भोजन जैसी बुनियादी सुविधा भी न मिलना पूरे कार्यक्रम पर बड़े सवाल खड़े करता है। बिरसा मुंडा का नाम लेकर भाषण देना आसान है, लेकिन उन्हीं के समाज के बच्चों को कार्यक्रम में उपेक्षित छोड़ देना किस तरह का सम्मान है यह सवाल अब चर्चा का विषय है।