महापौर रामू रोहरा ने कहा, पेड़ लगाकर भूलना नहीं है। कलेक्टर अभिनाश मिश्रा ने रुद्री-गंगरेल मार्ग को फ्लावर रूट" बनाने की बात कही और कहा कि धमतरी को एक नई पहचान मिलेगी। बातें सुनने में अच्छी लगती हैं, लेकिन सवाल वही पुराना है क्या ये पौधे सच में पेड़ बनते हैं? या फिर कैमरे से निकलते ही उन्हें भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाता है? पिछले साल भी कंपोजिट भवन के पास व कुछ अन्य जगह ठीक इसी तरह पौधे लगाए गए थे एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत। कुछ दिन अखबारों और चैनलों में तस्वीरें आईं। फिर वो पौधे धीरे-धीरे सूखते चले गए। किसी ने न पानी दिया, न देखभाल की। शिकायतें हुईं, खबरें चलीं, लेकिन न कोई सुधार हुआ और न ही किसी जिम्मेदार पर कार्रवाई। क्या मां के नाम पर पेड़ लगाना सिर्फ एक रस्म बनकर रह गया है?
क्योंकि मां तो जीवन देती है, देखभाल करती है, लेकिन यहां पौधा लगाकर लोग फोटो खिंचवाते हैं और अगले ही पल भूल जाते हैं कि पीछे एक प्राणी भी है जो सांस लेता है, जो जीवित रहने के लिए हमारी ज़िम्मेदारी मांगता है। मै दुर्गेश साहू आपसे निवेदन करता हु अगर आप सच में पेड़ को मां मानते हैं, तो उसे सिर्फ लगाइए मत, उसे पालिए भी। वरना एक फोटो के लिए एक पौधे की जान मत लीजिए।जवाबदेही की बात करें तो यह सिर्फ जनता की नहीं, उन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की भी है जो हर साल मंच से भाषण देते हैं, पर अगले ही साल पिछली नाकामियों की फाइलें भी नहीं पलटते। रुद्री-गंगरेल मार्ग पर 5,000 पौधे लगाने का लक्ष्य है। योजना बेहतरीन है, मंशा अच्छी है, लेकिन जब तक इसे ईमानदारी से निभाया न जाए, तब तक यह अभियान एक बार फिर एक फोटो ऑप, एक प्रेस नोट और एक खोखला संकल्प बनकर रह जाएगा। आखिर मां के नाम पर बोया बीज सूखे कैसे? कहते हो 'मां के जैसा कोई नहीं फिर मां को पानी देना क्यों भूल जाते हो?
यह खबर किसी की भावना को आहत करने के लिए नहीं है, बल्कि उन लोगों को जागरूक करने के लिए है जो पौधा तो श्रद्धा से लगाते हैं, लेकिन देखरेख के अभाव और लापरवाही के कारण उसे मरते हुए देख भी नहीं पाते। पौधा भी एक जिम्मेदारी है, सिर्फ फोटो नहीं।
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