दुर्गेश साहू।
धमतरी जिला अस्पताल पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। 17 सितंबर को स्वस्थ नारी सशक्त परिवार सेवा पखवाड़ा कार्यक्रम में सांसद रूपकुमारी चौधरी पहुँची हुई थी। मीडिया से बातचीत में कहा मुझे यहाँ आने के बाद यह जानकारी मिली कि निजी अस्पतालों से मरीज जिला अस्पताल रेफर हो रहे हैं, साथ ही जिला अस्पताल की बेहतर स्थिति बताई। धमतरी में अब सांसद की इस बयान ने एक नई बहस छेड़ दी है। अब बड़ा सवाल यह है कि यह जानकारी आखिर सांसद तक किसने पहुँचाई और किस आधार पर यह दावा किया गया। आमतौर पर आरोप हमेशा उल्टा लगता रहा है कि जिला अस्पताल से मरीजों को निजी अस्पताल भेजा जाता है।

लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जिला अस्पताल का निरीक्षण सिर्फ सांसद ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य मंत्री से लेकर कई अन्य मंत्री और अधिकारी समय-समय पर कर चुके हैं। हर बार निरीक्षण में डॉक्टरों की कमी और मशीनों की खराबी सामने आती है, वादे भी किए जाते हैं, लेकिन अस्पताल की हालत जस की तस बनी हुई है। निरीक्षण के दौरान वार्ड चमक उठते हैं, स्टाफ सजग हो जाता है, मशीनें सही बताई जाती हैं। मंत्री और अफसरों को सबकुछ ठीक-ठाक नजर आता है, लेकिन जैसे ही उनका दौरा खत्म होता है, हालात फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं। डॉक्टर और स्टाफ समय पर नहीं आते, मरीज घंटों लाइन में इंतज़ार करते हैं और गंभीर केस अक्सर बिना इलाज के ही रेफर कर दिए जाते हैं। सांसद का यह बयान तस्वीर को उल्टा दिखाता है।

जमीनी सच्चाई कहीं ज्यादा गंभीर है। लगभग आधी सदी पुराने इस अस्पताल में 200 से ज्यादा बिस्तर हैं और यह आसपास के 4 से अधिक जिलों के मरीजों का सहारा है। लेकिन यहाँ स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है। विभागीय आँकड़ों के मुताबिक स्पेशलिस्ट के 18 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से केवल 7 भरे हुए हैं और 11 खाली पड़े हैं। AMO के सभी 16 पद भरे हुए हैं, लेकिन विशेषज्ञों की कमी के कारण गंभीर बीमारियों का इलाज बाधित होता है। हाल ही में दो कर्मचारियों ने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली है, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई है।

अस्पताल की मशीनें भी लगातार खराब पड़ी रहती हैं। डिजिटल एक्स-रे महीनों से बंद है। सीटी-स्कैन मैनुअल मशीन से हो रहा है, जिसकी क्वालिटी बेहद कमजोर है। ऐसे में गंभीर मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। मजबूरी में उन्हें रेफर कर दिया जाता है या वे निजी अस्पताल का रुख करते हैं। गरीब तबके के लिए यह सबसे बड़ा संकट बन जाता है, क्योंकि उनके पास महंगे इलाज का खर्च उठाने की क्षमता नहीं होती। यही वजह है कि कई परिवार अपनी आँखों के सामने अपनों को खो देते हैं।

सांसद का बयान और अस्पताल की वास्तविक स्थिति एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। इस पर जब मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) से बात की गई तो उन्होंने कहा कि निजी अस्पताल सीधे तौर पर मरीजों को जिला अस्पताल रेफर नहीं करते। उनके अनुसार, निजी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद कुछ मरीज अपनी मर्जी से जिला अस्पताल आते हैं और जब किसी मरीज का हालत गंभीर होते हैं तो उन्हें मेडिकल कॉलेज या एम्स भेजा दिया जाता है। सीएमएचओ का कहना है कि ऐसे मामलों का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड अस्पताल में मौजूद नहीं रहता है।
उनके इस बयान ने नया सवाल खड़ा कर दिया है आखिर सांसद तक यह जानकारी किसने पहुँचाई और क्यों? क्या वाकई निजी अस्पताल अपने मरीजों को जिला अस्पताल भेज रहे हैं, या फिर यह सिर्फ बताने और दिखाने का खेल है?