दुर्गेश साहू। भारत की राजनीति में विपक्ष हमेशा अहम भूमिका निभाता आया है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा जो भी विपक्ष में रहा है, उसने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और जनता के मुद्दों को आवाज दी। लेकिन इन दिनों छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में विपक्ष की भूमिका संदेह के घेरे में है। राज्य सरकार द्वारा बढ़ती बिजली बिल व मूलभूत सुविधाओं से आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। लोग उम्मीद कर रहे थे कि विपक्ष इस मुद्दे पर सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ेगा। लेकिन हालात इसके उलट हैं धमतरी में विपक्ष पूरी तरह खामोश नजर आ रहा है। हाल ही में जब राज्य स्तर पर कांग्रेस ने बिजली बिल और महंगाई को लेकर विरोध प्रदर्शन किया, तब भी धमतरी में उसका असर फीका ही रहा। यहाँ विरोध तो हुआ, लेकिन उसमें भी गुटबाज़ी साफ दिखाई दी कुछ कार्यकर्ता और पदाधिकारी मंच पर मौजूद थे, तो कुछ जानबूझकर नदारद रहे। जनता को उम्मीद थी कि विपक्ष एकजुट होकर आवाज बुलंद करेगा, लेकिन नतीजा रहा उदासीनता और बिखराववाला। विगत दिनों कांग्रेसी नेताओं द्वारा अति ज्वलंत मुद्दे को लेकर अवाज बुलंद करने का भरकस प्रयास किया गया लेकिन सत्ताधारी के लोग उनके खिलाफ ही शिकायत दर्ज करवाने पहुंच गए थे। फिर भी पार्टी प्रमुख लोगों ने अपनी सीट नहीं छोड़ी और पार्टी के सदस्यों का किसी प्रकार का कोई समर्थन नहीं किया

हाल ही पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी के द्वारा एक आमसभा मे उदाहरण देते हुए संबोधित किया कि एक सड़ा आम पूरी टोकरी के आम को खराब कर देता है। क्या ऐसा आम धमतरी मे भी है..? 

सूत्र बताते हैं कि धमतरी में कांग्रेस खेमे के भीतर ही खींचतान तेज है। छोटे नेता बिजली बिल और महंगाई पर जनता के बीच जाने की कोशिश करते हैं तो बड़े नेता उन्हें समर्थन नहीं करते। हाल ही में राहुल गांधी ने कहा था कांग्रेस के भीतर जितने भी भाजपा के एजेंट हैं, उनकी पार्टी को कोई ज़रूरत नहीं है। वे स्वेच्छा से भाजपा में चले जाएं, वरना बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। क्या जिले में कुछ ऐसे कार्यकर्ता व पदाधिकारी है जो विपक्ष में रहकर भी सत्ता पक्ष के लिए इसी तरह काम कर रहे हैं..?

जब जनता महंगाई, बिजली बिल और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रही है, तब विपक्ष को चाहिए कि वह एकजुट होकर जनता की आवाज बने। लेकिन धमतरी में विपक्ष की लड़ाई सियासत से ज्यादा अपनों से होती नजर आ रही है। बड़ा सवाल आखिर जनता की आवाज उठाएगा कौन..?