दुर्गेश साहू धमतरी।रामलीला मैदान में दशहरा पर्व हर साल रावण दहन और आतिशबाज़ी की वजह से यादगार बनता है, लेकिन इस बार चर्चा की असली वजह सत्ता पक्ष के नेताओं की गुटबाजी रही। मंच से जनता को संदेश दिया गया बुराई का त्याग करें, मगर मंच पर बैठे नेताओं ने खुद इस संदेश को पलट कर रख दिया। हुआ यूं कि सत्ता पक्ष के दो गुटों के बीच खींचतान इतनी खुलकर सामने आई कि लोगों ने कहा रावण तो जल गया, लेकिन बुराई यहीं बैठी है। कार्यक्रम नगर पालिका निगम द्वारा आयोजित था। सबकी नजर उस वक्त ठहर गई जब एक गुट के नेताओं की नाम लिखी कुर्सियां सामने तो थीं, लेकिन उन्हें कोने में धकेलकर ऐसा एहसास दिलाया गया जैसे कह रहे हों लो बुला तो लिया, अब किनारे बैठो। हालत यहां तक पहुंची कि उसी गुट के एक नेता को मंच से बोलने तक का अवसर भी नहीं दिया गया। नतीजा यह कि पूरे मैदान में यही चर्चा छिड़ गई ये दशहरा का मंच है या सत्ता पक्ष का अखाड़ा? रावण दहन खत्म हुआ तो माहौल और गरमा गया। फोटोकॉल से नाराज होकर एक जनप्रतिनिधि भरी सभा में मंच छोड़कर सीधे बाहर निकल गए। जब इस पूरे मामले पर आयुक्त प्रिया गोयल से बात की गई तो उन्होंने नकारते हुए सफाई दी कि निगम ने अपने हिसाब से फोटोकॉल व्यवस्था की थी। अब सवाल यह है कि जब मंच से जनता को बुराई छोड़ने का संदेश दिया जाता है, तो क्या नेताओं की यह आपसी खींचतान और कुर्सी की राजनीति बुराई की श्रेणी में नहीं आती? और सबसे बड़ा सवाल सत्ता पक्ष की यह गुटबाजी आखिर कब तक जारी रहेगी?
0 Comments