दुर्गेश साहू धमतरी। दिवाली का पर्व बीत गया, लेकिन एक विभाग में अब भी उस मिठास की चर्चा जारी है जो बाँटी तो गई, पर किसी ने चखी नहीं। त्योहार के मौके पर मिठाई के डिब्बे आए। सबके चेहरों पर मुस्कान थी, जैसे त्योहार की खुशबू पूरे दफ्तर में घुल गई हो। लेकिन जैसे ही डिब्बे खुले, मुस्कान ठहर गई। मिठाई देखकर कई लोगों ने लेने से ही इंकार कर दिया। कहते हैं, मिठास दिल से आती है, डिब्बों से नहीं शायद यही वजह रही कि मिठाई वहीं पड़ी रह गई। समय बीता, लोग अपनी-अपनी व्यस्तता में लौट गए, लेकिन अब उसी मिठाई पर चींटियों ने कब्जा जमा लिया। अब चर्चा ये नहीं कि मिठाई किसने भेजी या क्यों नहीं ली गई… बल्कि ये कि अगर दफ्तरों में एक-दूसरे के बीच मिठास ही न रहे, तो मिठाई कितनी भी सुंदर क्यों न हो, उसका स्वाद कौन लेगा? त्योहार साल में एक बार आता है, पर रिश्तों की गर्मजोशी रोज़ निभाई जाती है। अफसोस… यहाँ त्योहार बीत गया, और मिठाई की जगह अब बस चींटियों की दिवाली बची है।

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