दुर्गेश साहू। धमतरी दर्पण ने शिक्षा व्यवस्था में चल रही खामियों और एक सहायक शिक्षक पर की गई विभागीय कार्रवाई का मुद्दा सबसे पहले सामने रखा था। मामला सामने आते ही जिले में शिक्षकों के बीच असंतोष बढ़ा और शिक्षक संघ ने जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय परिसर में पहुंचकर कार्रवाई के खिलाफ विरोध जताया। संघ का कहना था कि शिक्षक ने अपने व्हाट्सऐप स्टेटस में स्कूलों की वास्तविक समस्याओं, खासकर किताब न मिलने और सामग्री की कमी का उल्लेख किया था, जो किसी भी शिक्षक की ज़मीनी चिंता है, न कि अनुशासनहीनता। शिक्षक संघ के विरोध, चर्चाओं और बढ़ते दबाव के बाद जिला शिक्षा विभाग ने निलंबन आदेश वापस लेते हुए शिक्षक को पुनः बहाल कर दिया। बहाली आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि निलंबन अवधि को कार्य-अवधि माना जाएगा। लेकिन बहाली के बावजूद असली सवाल जस का तस है। जिले के कई स्कूलों में आज भी पुस्तक वितरण अधूरा है। कई शिक्षक अब भी बच्चों को बिना किताबों के पढ़ाने की मजबूरी झेल रहे हैं। बच्चों के पास यूनिफॉर्म, पुस्तकें और अध्ययन सामग्री न होने की शिकायतें बार-बार उठ रही हैं, जिससे पूरे सत्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही है। यही वह समस्या थी जिसे उस शिक्षक ने अपने स्टेटस में दिखाया था और जिसे आचरण उल्लंघन मानकर कार्रवाई कर दी गई थी।
शिक्षा अधिनियम के तहत प्रत्येक बच्चे को समय पर पुस्तकों और आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन जमीन पर स्थिति यह है कि कई विद्यालय संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं और बच्चे किताबें आने का इंतजार करते-करते सिलेबस पूरा होने के कगार पर पहुंच रहे हैं। न जाने कितने शिक्षक जिले में हैं जो इसी तरह की समस्याओं से रोज़ सामना कर रहे हैं, पर आवाज़ उठाने पर वही जोखिम रहता है जो इस मामले में दिखा। यह पूरा प्रकरण एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि यदि किसी शिक्षक द्वारा समस्या बताना भी कृत्य माना जाएगा, तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार की शुरुआत कहाँ से होगी। बहाली आदेश से शिक्षक की समस्या तो हल हो गई, लेकिन बच्चों की नहीं। असली सवाल यही है कि स्कूलों में किताबें कब पहुँचेंगी, और बच्चों की पढ़ाई बिना रुकावट कब आगे बढ़ पाएगी। हालांकि शिक्षक के निलंबन और बहाली के मामले में ये भी बात सामने आई है कि शिक्षक की स्कूल में जो किताबों की समस्या थी उसे भी दूर दिया गया हैं।