दुर्गेश साहू। धमतरी में जनजाति गौरव दिवस कार्यक्रम के दौरान कांकेर लोकसभा सांसद भोजराज नाग से मीडिया ने जिले में लगातार उठते एक पुराने मुद्दे पर सवाल किया। यह शिकायत लंबे समय से सामने आती रही है कि जिले में कई अधिकारी न तो पत्रकारों के फोन उठाते हैं और न ही आम जनता के। इसी को लेकर एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि यदि अधिकारी पत्रकारों के कॉल तक रिसीव नहीं करते, तो आम लोगों की समस्याएँ कैसे सुनी जाएँगी। क्या यह माना जाए कि भाजपा शासन काल में जिले में अधिकारी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सवाल सुनकर सांसद भोजराज नाग ने हल्के मजाकिया अंदाज में कहा कौन-कौन अधिकारी फोन नहीं उठाता, नाम बताना… उसके नाम से नींबू काटेंगे। कार्यालय में मौजूद जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता इस जवाब पर जोर से हंस पड़े, लेकिन यही हंसी एक बड़ा सवाल भी छोड़ गई कि आखिर यह हंसी किस पर थी बयान पर, या उस जनता की समस्या पर जो अधिकारियों को फोन मिलाकर थक चुकी है। धमतरी में यह समस्या एक-दो दिन की नहीं है। कई नागरिक बताते हैं कि अधिकारी फोन नहीं उठाते, बार-बार कॉल करने पर भी जवाब नहीं मिलता और शिकायतें लंबित रह जाती हैं। हालांकि यह भी सच है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना वजह, लगातार फोन और संदेश भेजकर अधिकारियों को परेशान करते हैं, जिससे कई अधिकारी फोन रिसीव करने से बचने लगते हैं। इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ता है जिनकी समस्या वास्तव में गंभीर होती है और जिन्हें सहायता की जरूरत होती है। सांसद का बयान भले ही मजाकिया लहजे में था, लेकिन धमतरी में जनता और प्रशासन के बीच बढ़ती दूरी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जनता बार-बार एक ही शिकायत दोहराती है कि समस्याएँ सुनने के लिए अधिकारी फोन पर उपलब्ध नहीं रहते, और हर बार यह मुद्दा कुछ देर चर्चा के बाद फिर शांत पड़ जाता है। अब सवाल यही है कि क्या सिर्फ मजाक, तंज या नींबू काटने की सलाह से यह समस्या खत्म होगी। क्या अधिकारी जनता के फोन उठाने लगेंगे या यह मुद्दा फिर पहले की तरह अगली शिकायत तक टल जाएगा। लोगों की अपेक्षा साफ है समस्याएँ सुनी जाएँ और समाधान मिले। धमतरी की जनता अब इस मामले में वास्तविक बदलाव देखना चाहती है, न कि सिर्फ हल्की-फुल्की हंसी और औपचारिक प्रतिक्रिया।
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