दुर्गेश साहू धमतरी। छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के जश्न के बीच शिक्षा विभाग ने एक ऐसे शिक्षक को निलंबित कर दिया, जिसने राज्योत्सव की चमक-दमक के बीच शिक्षा व्यवस्था की हकीकत दिखा दी। कुरूद ब्लॉक के ग्राम नारी प्राथमिक शाला में पदस्थ सहायक शिक्षक ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के रवैये पर टिप्पणी की थी। विभाग ने इस पोस्ट को शासन के कार्यों के विरुद्ध मानते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबन का आदेश जारी किया। निलंबन आदेश में कहा गया कि संबंधित शिक्षक ने बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ठप्प है और हम चले राज्योत्सव मनाने... जैसी टिप्पणी कर शिक्षकीय आचरण का उल्लंघन किया है। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के तहत कार्रवाई करते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। लेकिन इस कार्रवाई के बाद कई बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या किसी सरकारी कर्मचारी को अपने क्षेत्र की वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने का अधिकार नहीं है? क्या स्कूल में बच्चों को किताबें न मिलना शासन विरोधी टिप्पणी कहलाएगा या व्यवस्था की सच्चाई? शिक्षा अधिनियम 2005 के अनुसार, हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। इस अधिनियम के तहत सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी बच्चों को किताबें, यूनिफॉर्म और अध्ययन सामग्री समय पर उपलब्ध कराई जाए। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, जिले के कई स्कूलों में अब तक पुस्तक वितरण अधूरा है, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। यह वही समस्या है जिसे लेकर हाल ही में विपक्ष ने भी सरकार को घेरा था सवाल उठाया था कि जब किताबें ही नहीं पहुँचीं, तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कैसे की जा सकती है। राज्य सरकार इस समय 25वां स्थापना दिवस मना रही है, और प्राथमिकता के तौर पर शिक्षा को अपनी उपलब्धियों में गिना जा रहा है। लेकिन जब मैदान में शिक्षण संस्थान किताबों के इंतजार में हैं, तब यह जश्न एक कटाक्ष की तरह लगता है। अब पूरा मामला सिर्फ निलंबन तक सीमित नहीं रहा। यह घटना उस सोच को चुनौती देती है जिसमें समस्या बताने वाला व्यक्ति व्यवस्था का विरोधी माना जाता है। अगर स्कूलों की स्थिति पर सवाल उठाना आचरण का उल्लंघन है, तो फिर सुधार की शुरुआत कहाँ से होगी?

सवाल साफ़ है क्या स्कूल की सच्चाई बताना अब जुर्म बन गया है? या फिर यह सच्चाई वही है जिसे व्यवस्था अनदेखा करना चाहती है…