दुर्गेश साहू धमतरी। सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर आयोजित यूनिटी मार्च एवं आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम का उद्देश्य एकता और विकास का संदेश देना था, लेकिन पैदल मार्च से लेकर सभा तक जो माहौल दिखा, उसने उसी संदेश पर सवाल खड़े कर दिए। नगर पंचायत आमदी से शुरू हुआ यह पैदल मार्च पोटियाडीह, मुजगहन और रत्नाबांधा होते हुए शहर के गांधी मैदान पहुँचा, जहाँ समापन सभा रखी गई थी। सभा स्थल पर कार्यक्रम के प्रोटोकॉल के अनुसार मुख्य अतिथियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के लिए कुर्सियों पर नाम के स्टीकर लगाए गए थे और शुरुआत तक स्थिति व्यवस्थित दिख रही थी। फिर अचानक स्थिति बदल गई। सभा में मौजूद मुख्य अतिथि और जनप्रतिनिधि साथ बैठे तो दिखे, लेकिन एक कुर्सी का नाम बदलकर उसे अलग और दूर कर दिया गया। जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता साफ तौर पर नाराज़ दिखाई दिए। सूत्रों के मुताबिक, मार्च के आगमन से पहले ही एक जनप्रतिनिधि सभा मंच पर आकर कुर्सियों को इधर-उधर करवा गए थे। धमतरी की राजनीति में समय-समय पर गुटबाज़ी की झलक मिलती रही है और इस बार भी वही तस्वीर उभरी। जहाँ एकता का नारा देने वाली रैली में ही कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि अपने-अपने समूहों में नजर आए। मेल-जोल के बजाय खींचतान और असंतोष साफ झलक रहा था।
साथ ही विकास के संदेश पर भी सवाल उठे। जिस मार्ग से यूनिटी मार्च गुज़रा, वह रास्ता कई जगह गड्ढों और धूल से भरा हुआ है। विकास की दिखावे में अक्सर श्रेय की होड़ चलती है, पर सड़कों की बदहाली पर कौन जिम्मेदारी उठाएगा, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। इस बीच,सभा के पोस्टरों से क्षेत्रीय विधायक की तस्वीर नहीं होने ने विवाद को और हवा दे दी। इस अनदेखी ने आयोजनों के राजनीतिक आयाम पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। जिस मंच से एकता का संदेश दिया जाना था, वही मंच आयोजकीय सेट-अप और राजनीतिक समीकरणों के चलते विवाद के केंद्र में बदल गया।

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