दुर्गेश साहू। कभी समाज की पहचान मेहनतकश लोगों और संस्कारों से होती थी, लेकिन अब वही समाज नशे की गिरफ्त में धीरे-धीरे घुटता जा रहा है। सड़क पर, बाजार में, स्कूल के  पास या  गाँव के चौक में कहीं न कहीं नशे का अंधेरा फैलता दिख रहा है। यह सिर्फ एक बुरी आदत नहीं, बल्कि एक ऐसी आग है जो युवाओं के भविष्य को राख बना रही है। 25 मार्च 2020 वह तारीख जिसे देश शायद ही कभी भूल पाए। पूरा देश लॉकडाउन में था, सड़कें खाली थीं और लोग अपने घरों में कैद। उस समय हर किसी के मन में एक ही सवाल था। घर से बाहर निकलने की आज़ादी आखिर कब मिलेगी? लेकिन अब विडंबना देखिए, हालात। पूरी तरह उलट गए हैं। अब लोग बाहर निकलने से डरते हैं, क्योंकि समाज के हर मोड़ पर नशे का जाल बिछ चुका है। कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने ज़रूरी सेवाओं को खोलने की अनुमति दी थी, जिनमें शराब दुकानें भी। शामिल थीं। नशा पहले से मौजूद था, लेकिन महामारी के बाद इसकी पकड़ और गहरी हो गई। लंबे लॉकडाउन और आर्थिक तनाव। ने लोगों को मानसिक रूप से तोड़ा, और धीरे-धीरे नशा राहत का सहारा बन गया।
जब हालात सामान्य हुए, तब समाज में नशीली दवाओं, इंजेक्शनों और अन्य प्रतिबंधित पदार्थों का फैलाव तेजी से बढ़ गया। आज स्थिति यह है कि नशे की सबसे बड़ी चपेट में युवा पीढ़ी है। बेरोजगारी, आसान कमाई का लालच और प्रशासनिक उदासीनता इन तीनों ने मिलकर एक खतरनाक माहौल बना दिया है। शहरों से लेकर गाँवों तक अब नशे के ठिकाने खुलेआम सक्रिय हैं। पुलिस समय-समय पर कार्रवाई करती है, लेकिन कुछ दिनों बाद वही कारोबार फिर से शुरू हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे कानून का डर खत्म हो गया है और समाज की संवेदनाएँ सुन्न पड़ चुकी हैं। नशे की यह लहर अब सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि रिश्ते भी तोड़ रही है। कई बार नशे में लोग अपने ही घरवालों को नहीं पहचान पाते। छोटी सी कहासुनी में दोस्त दुश्मन बन जाता है, और मामूली झगड़े में जान चली जाती है। माँ-बाप की ममता, भाईचारे का बंधन, और समाज की मर्यादाएँ सब पर नशे का ज़हर धीरे-धीरे चढ़ रहा है। आज हालात इतने गंभीर हैं कि नशे में लिप्त झगड़े और खून-खराबे आम बात हो गए हैं। कहीं शराब के नशे में दोस्त पर हमला, तो कहीं नशीली दवाओं के असर में किसी ने घरवालों को ही नुकसान पहुँचा दिया। पुलिस की कोशिशें जारी हैं, लेकिन जब तक समाज खुद जागरूक नहीं होगा, तब तक यह जंग अधूरी ही रहेगी। यह अब सिर्फ एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक आपदा बन चुका है। जरूरत है सामूहिक जागरूकता की क्योंकि नशे के खिलाफ सिर्फ कानून नहीं, समाज की इच्छाशक्ति भी जरूरी है।

अब सवाल यह है क्या हम आने वाली पीढ़ी को इस अंधकार में डूबता हुआ देखते रहेंगे? समय की पुकार है जागरूक बनिए, सतर्क रहिए, और नशे के खिलाफ खड़े हो जाइए। क्योंकि जब तक समाज खुद नहीं बदलेगा, तब तक कोई भी अभियान पूरी तरह सफल नहीं हो सकता।